Man ka kona |
Posted: 15 Apr 2010 02:50 AM PDT Linked from हिंदी हैं हम..: मन का कोना चलता है जीवन ऐसे, चलना,रुकना ,हँसना रोना, सबमें भरता रहता है, पर खाली है मन का एक कोना..... सुबह की किरणें जब, आँगन को भर जातीं हैं, खाली आँचल की टीस बेटे, मुझको बहुत सताती है... तेरे बापू यूँ तो सबके सामने, गर्व से सीना फुलातें हैं, कई बार अँधेरे कमरे में, जब दोपहर घर में, बहू खाना बनाती है, सच खून सुनी मांग कलाई, ह्रदय में हुक सा उठाती है... छोटा सा मुन्ना जब रोता है, गुडिया बच्ची से बड़ी बन जाती है, हम शहीद की हैं औलादें, "जय हिंद" के नारे लगाती है... ये ना कहूँगी गर्व नहीं है मुझको, पर मन को कैसे समझाऊं, पलकों को यूँ कैसे बंद करूँ , कि एक भी नीर बहा ना पाऊं... जितनी भी जंगे होती हैं, दो गुटों में लड़ी जाती हैं, गुटों की हों हार या जीत, माएँ लाल गंवाती हैं... फिर भी सबको समेट कर, मैं अपना घर बनाउंगी, एक वीर को जनने वाली, हर मुश्किल को जीत जाउंगी... शायद घर बन जाये जल्द ही, और सब संभाल जायेंगे, लेकिन ये भी सच है बेटे, मन का एक कोना ना भर पाएंगे.... (आस्था "देव") |
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